नई दिल्ली । भारत के विभाजन ने कई मायने में पूर्वोत्तर राज्यों की प्राकृतिक कनेक्टिविटी को तोड़ दिया है। राजनीतिक बाधाओं के साथ-साथ प्रशासनिक मुद्दों के कारण क्षेत्र के विकास पर असर पड़ा। विकास का यह स्तर बिल्कुल धीमा हो गया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में छात्रों को संबोधित करते हुए यह बातें कही।
कॉलेज में सोमवार को दक्षिण पूर्व एशिया और जापान के साथ पूर्वोत्तर भारत का एकीकरण-आर्थिक संबंधों और पारिस्थितिक संरक्षण का संतुलन विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया।
छात्रों को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि भारत के विभाजन ने कई मायने में उस प्राकृतिक संपर्क को तोड़ दिया है जो पूर्वोत्तर के पास था। इस कारण से जिस तरह का विकास वहां होना चाहिए था वह धीमा पड़ गया। विभाजन के बाद पहले कुछ सालों में राजनीतिक बाधाओं और प्रशासनिक मुद्दों के कारण पूर्वोत्तर राज्यों को वह लाभ नहीं मिल सका जो देश के अन्य हिस्सों को मिला। उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों में अब आर्थिक स्थिरता मजबूत मोर्चे की ओर बढऩे लगी है। वहीं भारत ने कोविड महामारी के दौरान जिस तरह से स्थिति को संभाला उस कारण से विदेश में रहने वाले लोगों की धारणा में बदलाव हुआ है। उन्होंने भारत के भविष्य पर जोर देते हुए कहा कि भविष्य सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी, अंतरिक्ष उद्योग और ड्रोन होंगे। देश का भविष्य विद्युत गतिशीलता होगा, अंतरिक्ष उद्योग होगा, यह ड्रोन होगा, यह स्वच्छ तकनीक होगा।
कार्यक्रम में छात्रों ने सीमा, पुलिसिंग ओर कनेक्टिविटी के बारे में कई सवाल किए। एक सवाल के जवाब में विदेश मंत्री ने कहा कि मुझे लगता है कि हर देश को यह सुनिश्चित करने का अधिकार है कि उसकी सीमाएं सुरक्षित हैं। यह एक राज्य का दायित्व है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत कई वर्षों से इसमें विफल रहा है, लेकिन अब चीज़ें अलग होंगी। विदेशमंत्री ने माना कि पिछला दशक अलग रहा है। उन्होंने वादा किया कि अगला दशक अलग होगा। बातचीत के दौरान उन्होंने स्पष्ट किया कि सीमा को सुरक्षित करने का मतलब कनेक्टिविटी को खत्म करना नही है बल्कि इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि कनेक्टिविटी बरकरार रहे।