नई दिल्ली। उच्च न्यायालय ने मंगलवार को अपने पहले के आदेश को वापस ले लिया, जिसमें एक महिला को पिछले साल अक्तूबर में अपने पति को खोने के आधार पर गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी थी। अनुमति के समय वह 24 सप्ताह की गर्भवती थी।
चार जनवरी को उच्च न्यायालय ने यह देखते हुए गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी थी कि महिला ने 19 अक्तूबर 2023 को अपने पति को खो दिया था और 31 अक्तूबर को उसे अपनी गर्भावस्था के बारे में पता चला था। मंगलवार को न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने एम्स व केन्द्र सरकार की अपील स्वीकार करते हुए आदेश वापस लिया।
पिछले दिसंबर में महिला ने अपनी गर्भावस्था जारी न रखने का फैसला किया था। उच्च न्यायालय ने तब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को यह प्रक्रिया करने के लिए कहा था। हाल ही में निर्णय पलटने के फैसले पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि यह आदेश मामले के अजीबोगरीब तथ्यों और परिस्थितियों में पारित किया गया था और इसे एक मिसाल के रूप में नहीं माना जाना चाहिए।
इसके बाद केंद्र ने उच्च न्यायालय के चार जनवरी के आदेश को वापस लेने की मांग करते हुए एक आवेदन दायर किया। इसमें 26 सप्ताह की गर्भावस्था की समाप्ति से संबंधित 'एक्स वी यूनियन ऑफ इंडिया एंड अन्य' में सुप्रीम कोर्ट के 16 अक्तूबर 2023 के फैसले का हवाला दिया गया। केंद्र ने अपने आवेदन में कहा है कि न्यायालय के लिए अनिवार्य है कि वह अजन्मे बच्चे के जीवन के अधिकार की रक्षा पर विचार करे, ताकि बच्चे के जीवित रहने का उचित मौका हो और इसलिए चार जनवरी का आदेश वापस लेना आवश्यक है।