दिल्ली। देश के जिला अस्पतालों में नवजातों की देखभाल की स्थिति दयनीय है। इसका खुलासा एम्स के एक शोध से हुआ है। 6612 नवजात पर हुए अध्ययन में सेप्सिस के लक्षण पाए गए। देश के जिला अस्पतालों में नवजातों की देखभाल की स्थिति दयनीय है।
इसका खुलासा एम्स के एक शोध से हुआ है। 6612 नवजात पर हुए अध्ययन में सेप्सिस के लक्षण पाए गए। यह नवजात शिशुओं में होने वाले संक्रमण की गंभीर अवस्था है। विशेषज्ञों का कहना है कि सेप्सिस एक जानलेवा चिकित्सा आपात स्थिति है। यह तब होता है जब शरीर किसी संक्रमण के प्रति ज्यादा प्रतिक्रिया करता है और अपने ही ऊतकों और अंगों को नुकसान पहुंचाता है।
रोग की पहचान करने के लिए एम्स के विशेषज्ञाें ने जिला अस्पताल के पांच एसएनसीयू में भर्ती नवजात शिशुओं को नामांकित किया। यह बच्चे सरकारी अस्पताल, कुड्डालोर, जिला अस्पताल, महासमुंद, क्षेत्रीय अस्पताल, ऊना, सिविल अस्पताल, शिवसागर और सरकारी नाहटा अस्पताल, बालोतरा में भर्ती थे। प्रत्येक एसएनसीयू को एक तृतीयक देखभाल संस्थान से जोड़ा गया। अध्ययन में 6612 नवजात शिशुओं को शामिल किया गया।
इनमें से 3972 अस्पताल में जन्मे और 2640 बाहर जन्मे शामिल थे। इनकी औसत गर्भावधि 37.1 सप्ताह रही। जन्म के समय इन नवजात का वजन 2.540 ग्राम था। शोध में 50.8 फीसदी नवजात शिशुओं में सेप्सिस के लक्षण पाए गए। खून में संक्रमण (कल्चर पॉजिटिव सेप्सिस) की दर 3.2 फीसदी थी, जोकि पांचो अस्पतालों में अलग-अलग (0.6 फीसदी से 10 फीसदी) रही। बाहर जन्मे शिशुओं में सेप्सिस के मामले (5.0 फीसदी) अस्पताल में जन्मे शिशुओं (2.0 फीसदी) से ज्यादा थे। कल्चर पॉजिटिव सेप्सिस वाले शिशुओं की मृत्यु दर 36.6 फीसदी थी।
इनका दिखा संक्रमण
संक्रमण फैलाने वाले जीवाणुओं में तीन मुख्य बैक्टीरिया मिले। इसमें क्लेबसिएल्ला निमोनिए, ई. कोलाई और एन्टेरोबेक्टर प्रजातियां शामिल हैं। इन बैक्टीरिया में ज्यादातर (75 फीसदी-88 फीसदी) मल्टीड्रग रेसिस्टेंस थे।
इस वजह से किया गया अध्ययन
नवजात शिशुओं में सेप्सिस (इंफेक्शन) पर बड़े अस्पतालों में काफी शोध किया गया है, लेकिन छोटे अस्पतालों में इस जानकारी का अभाव है। इस अध्ययन की मदद से जिला अस्पतालों में भर्ती नवजात शिशुओं में सेप्सिस की दर, संक्रमण के कीटाणुओं और उनके एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस की स्थिति को समझा गया।
लिए गए खून के सैंपल
अक्टूबर 2019 से दिसंबर 2021 के बीच हुए अध्ययन में शामिल नवजात से खून के नमूने लिए गए और उन्हें संबंधित बड़े अस्पतालों की प्रयोगशालाओं में जांच के लिए भेजा गया। संक्रमण के जीवाणुओं की पहचान और उनके एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस की जांच मशीन से की गई।
प्रभावित शिशुओं की उच्च मृत्यु दर पाई गई
एम्स के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. एम जीवा शंकर सहित अन्य विशेषज्ञों ने शोध में समस्या को पाया। साथ ही सुधार की उम्मीद जताई। शोध में बताया गया कि देश के जिला अस्पतालों में नवजात शिशुओं में सेप्सिस की दर काफी अधिक है। इससे प्रभावित शिशुओं में उच्च मृत्यु दर पाई गई है। संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया में मल्टीड्रग रेसिस्टेंस की भी दर काफी अधिक है। इसकी गंभीरता को देखते हुए सुझाव दिया गया कि जिला अस्पतालों में संक्रमण रोकने के उपाय और एंटीबायोटिक के सही उपयोग करने की तत्काल कदम उठाए जाएं।