नई दिल्ली । राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत ने वेद को आंतरिक और अध्यात्मिक ज्ञान का मूल बताते हुए कहा है कि बाहरी सुख को ही सबकुछ मान कर अशांति और अस्थिरता को न्यौता देने वाली दुनिया को भारत का ज्ञान ही नई दिशा दे सकता है। अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में श्रीपाद दामोदर सातवलेकर कृत वेदों के हिंदी भाष्य के तृतीय संस्करण का लोकार्पण करते हुए उन्होंने कहा कि वेद और भारत दोनों एक ही हैं।
दोनों को सनातन धर्म का आधार बताते हुए भागवत ने कहा कि इसका ज्ञान विज्ञान की सीमा से परे है जो बाहरी सुख की जगह आंतरिक सुख का महत्व समझाता है।
भागवत ने कहा कि समस्या यह है कि दुनिया ने भौतिक सुख को ही सबकुछ मान लिया। भौतिक सुख के इतर ज्ञान को न तो समझ पाए और न ही इस दिशा में आगे बढ़े। इसके उलट तब समृद्ध और ज्ञान से परिपूर्ण भारत ने भौतिक सुख के इतर आध्यात्मिक सुख को पहचाना। इसे वेदों तथा अन्य माध्यमों से व्यक्त किया। जिसके ज्ञान ने बताया कि भौतिक सुख क्षणिक है। इसके इतर एक आध्यात्मिक सुख भी है जो मन और विचार से हासिल किया जा सकता है। वेद ने दुनिया को बताया कि पूरी श्रृष्टि एक है, जिसमें जीवन जीने के लिए एक मात्र स्पर्धा ही विकल्प नहीं है।
विज्ञान ले रहा वेद से सीख
भागवत ने कहा कि विज्ञान की एक सीमा है जो खत्म हो चुकी है। इसके उलट वेद है, जिसने हजारों साल पहले सूर्य की रोशनी के पृथ्वी तक पहुंचने का समय बताया। वेदों में गणित मिलता है। इसमें घन और घनमूल के साथ वर्ग और वर्गमूल का फार्मूला है। इसलिए वेदों को ज्ञान निधि कहते हैं। इसलिए वेद भौतिक जीवन ही नहीं अध्यात्मिक जीवन की भी निधि है। यही कारण है कि विज्ञान अब वेद से सीख ले रहा है। उसे आगे बढऩे के लिए वेद की जरूरत पड़ी है।
आने वाला समय सनातन व भारत का
संघ प्रमुख ने कहा कि बाहरी सुख को सबकुछ मान लेने वाली दुनिया अब मंथन कर रही है। उसने अब आंतरिक और आध्यात्मिक सुख पर बात करनी शुरू की है। यह ऐसा ज्ञान है जो हमारे सनातन और भारत में हजारों वर्षों से रहा है। ऐसा ज्ञान जो हमें बताता है कि भौतिक सुख ही सबकुछ नहीं है। वास्तविक सुख के लिए प्रतिस्पर्धा, युद्ध की जरूरत नहीं है। इसलिए अब सभी मानते हैं कि आने वाला समय सनातन और भारत का है।