नई दिल्ली। मानसून से पहले वर्षा जल को संचित करने वाले एमसीडी की ओर से तैयार किए गए सभी 258 रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम दुरुस्त किए जाएंगे। सिल्ट और मिट्टी से ढके हुए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की सफाई कर फिर से गड्ढे में सबसे नीचे मोटे पत्थर (कंकड़), बीच में मध्यम आकार के पत्थर (रोड़ी) और सबसे ऊपर बारीक रेत या बजरी, कपड़ा, डालकर इन्हें तैयार किया जाएगा।
इस दौरान करोल बाग जोन में तीन नए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम भी इस साल बनाए जाएंगे।
सभी वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को जून के आखिर तक दुरुस्त करने की कार्य योजना एमसीडी के उद्यान विभाग ने तैयार की है। अधिकारियों का कहना है कि दिल्ली में जुलाई में फुल मानसून आता है, इसलिए अभी उनके पास पर्याप्त समय है और समय सीमा के भीतर ही वे अपने रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को साफ करने और नए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाने का काम पूरा कर लेंगे। जल संकट दिल्ली ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की एक गंभीर समस्या है। वर्षा जल संचित कर गिरते भूजल स्तर को रोका जा सकता है। जल संचय करके ही भविष्य में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा सकता है। एमसीडी वर्षा जल को ज्यादा से ज्यादा संचित करने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की संख्या बढ़ाने के लिए दिल्लीभर में स्थान का सर्वे करा रहा है।
एमसीडी के बंद पड़े बोरवेल में बनाए गए
खास बात ये है कि एमसीडी के ये सभी रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम इनके पार्कों में सालों से बंद पड़े बोरवेल की जगह पर बनाए गए हैं। सबसे पहले पूर्वी दिल्ली में ये प्रयोग किया गया और करीब 50 वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तैयार किए गए। इनकी सफलता को देखते हुए वित्त-वर्ष 2022-23 में पूरी दिल्ली में ये प्रयोग किया गया। इस दौरान दिल्ली भर में 258 रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम तैयार किए गए, जिनके जरिये लाखों लीटर वर्षा जल फिर से भूजल में परिवर्तित हो रहा है। भारी बारिश होने पर भी इन स्थानों पर जलभराव होना बंद हो गया है।
बेहद कम लागत में एमसीडी ने किया प्रयोग
एमसीडी ने इन सारे रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को बेहद कम लाग में तैयार किया है। निगम अधिकारियों के मुताबिक, एक रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को बनाने में करीब 15 हजार रुपये की लागत आती है। पहले से बोरिंग होने के कारण उस जगह पर एक करीब 3 फुट चौड़ा और 5 फुट गहरा गड्ढा करने की आवश्यकता होती है। इसके अंदर पानी को छानने (फिल्टर करने) के लिए कंकड़, रोड़ी, बालू और कपड़े की जरूरत पड़ती है।