नई दिल्ली । देश में पॉक्सो को लेकर सख्त कानून और फास्ट ट्रैक कोर्ट मौजूद हैं। बावजूद इसके बच्चियों से दुष्कर्म के 70 फीसदी मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं। इसका बड़ा कारण पुलिस की जांच में देरी, लंबी न्याय प्रक्रिया और जांच के लिए विशेषज्ञों की कमी है। हालत यह है कि देश की राजधानी दिल्ली में पॉक्सो के मामले निपटाने के लिए 40 पॉक्सो समर्पित अदालतें हैं, जिनमें 7942 मामले लंबित हैं।
पुलिस रिकार्ड के अनुसार, दिल्ली में हर साल पॉस्को के लगभग 700 से ज्यादा नए केस आते हैं। 67 फीसदी मामलों में पीड़िता दबाव के चलते बयान से मुकर जाती है। 26 फीसदी मामलों में पीड़िता आरोपियों की पहचान कर पाती है। सिर्फ 12 फीसदी मामलों में ही आरोपियों को सजा मिल पाती है।
आपराधिक मामलों के वकील रवि दराल ने बताया कि पॉक्सो केस दर्ज होने के बाद ट्रायल की प्रक्रिया (प्राइमरी जांच, चार्जशीट, फारेंसिक रिपोर्ट आदि) इतनी लंबी है कि आरोपियों को पीड़िता या उसके परिजनों पर दबाव बनाने का पूरा समय मिलता है। इसके चलते कई बार पीड़िता केस वापस ले लेती है। अधिकांश मामलों में पीड़िता आर्थिक रूप से कमजोर होती है। ऐसे में उसके परिजनों को प्रलोभन देना आसान हो जाता है। जब पिता या कोई रिश्तेदार आरोपी हो तो स्थिति और बिगड़ जाती है। ऐसे में कई मामलों में परिजन ही बच्ची को समझा-बुझाकर मामला खत्म करवा देते हैं। ऐसे में सजा की दर बहुत कम हो जाती है। पीड़िताओं में सबसे अधिक 12 से 15 वर्ष की होती है। फिर दूसरे नम्बर पर 16 से 18 वर्ष और अंतिम में पांच वर्ष से कम की बच्ची पीड़ित होती है।
फर्जी मामलों के चलते असली पीड़ितों को नुकसान
अधिवक्ता रवि दराल ने बताया कि पॉक्सो अधिनियम के तहत दर्ज मामले कई बार फर्जी होते हैं। इनमें लड़की अपनी मर्जी से लड़कों के साथ जाती है और परिवार के दबाव में आकर केस दर्ज कराती है और बाद में अदालत में बयान बदल लेती है। कई मामलों में बच्चे भी हो जाते हैं उसके बाद केस दर्ज कराए जाते हैं। फर्जी मामलों के चलते सभी मामलों को संदिग्ध नजर से देखा जाता है और असली पीड़ितों को न्याय मिलने में देरी होती है।
राजधानी में क्या है व्यवस्था
दिल्ली के 11 जिलों में 40 पॉक्सो कोर्ट मौजूद हैं और चार विटनेस रूम उपलब्ध है
पटियाला हाऊस, रोहिणी और द्वारका कोर्ट में अलग से विटनेस रूम उपलब्ध नहीं है
तीस हजारी कोर्ट में पॉक्सो की 10 कोर्ट हैं, लेकिन विटनेस रूम एक है
कड़कड़ डूमा कोर्ट में पॉक्सो की 10 कोर्ट हैं और विटनेस रूम दो हैं
साकेत में पॉक्सो की दो कोर्ट हैं और विटनेस रूम 1 उपलब्ध है
पुलिस भी नहीं करती नियमों का पालन
पॉक्सो अधिनियम के तहत पीड़ित के बयान 30 दिन के भीतर लेने होते है लेकिन ज्यादातर मामलों में ऐसा नहीं हो पाता। नाबालिग पीड़िता को पूछताछ के लिए थाने नहीं बुला सकते, लेकिन पुलिस थाने में बुलाकर करती है। केवल महिला जांच अधिकारी को ही पूछताछ करने का अधिकार होता है। लेकिन पीड़िता को पीसीआर और थाना पुलिसकर्मियों के सवाल भी झेलने पड़ते हैं। पुलिसकर्मी वर्दी में पूछताछ नहीं कर सकते। थाने में पूछताछ के दौरान अक्सर पुलिसकर्मी वर्दी में ही होते हैं।
क्या है प्रोटेक्शन ऑफ चिन्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल (पॉक्सो) एक्ट 2012
18 साल से कम उम्र के बच्चों को दुष्कर्म, सेक्सुअल असॉल्ट आदि से सुरक्षा प्रदान करता है। 12 साल तक के बच्चों से दुष्कर्म के केस में अधिकतम फांसी की सजा का प्रावधान है। एक्ट में पहले न्यूनतम सजा 7 साल थी, जिसे बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया है। वारदात के 30 दिन के अंदर पुलिस को बच्चे के बयान सहित सभी सबूत जुटा लेने का प्रावधान है। एक साल के भीतर पॉक्सो एक्ट के मामलों को निपटारा हो जाना चाहिए।
केस-1 :पिता ने ही बेटी के साथ किया दुष्कर्म
वर्ष 2023 में सीमापुरी इलाके में एक 10 वर्षीय बच्ची के साथ उसके पिता ने दुष्कर्म की वारदात को अंजाम दिया। पुलिस ने मामले में केस दर्ज कर जांच शुरू की और आरोपी को गिरफ्तार किया। एक वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक मामले में कोई फैसला नहीं आया है। जबकि बच्ची की मां लगातार आरोपियों के भाईयों पर धमकी देने और दबाव बनाने का आरोप लगा रही है।
केस-2 : चार साल से इंसाफ का इंतजार
गीता कॉलोनी में रहने वाली एक 15 वर्षीय नाबालिग को दुष्कर्म के चार साल बाद भी इंसाफ मिलने का इंतजार है। फेसबुक पर बना एक दोस्त उसे घुमाने के बहाने एक घर में ले गया और जबरन उसके साथ दुष्कर्म किया। गीता कॉलोनी थाना पुलिस ने केस दर्ज कर मामले की जांच शुरू की। जुलाई 2020 में केस दर्ज हुआ था, लेकिन 2024 बीत जाने के बाद भी मामले में कोई फैसला नहीं आया है।