नई दिल्ली। उच्च शिक्षा में उद्योग और अकादमिक दूरियां अब 'प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस' योजना से कम हो रही है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आधार पर शैक्षणिक संस्थानों में उद्योग और पेशेवर विशेषज्ञता को एकीकृत करने के उद्देश्य से योजना को मंजूरी दी।
इसके तहत 332 विश्वविद्यालयों के 11200 विशेषज्ञों ने ऑनलाइन आवेदन किया है। वहीं, 32 उच्च शिक्षण संस्थानों में 'प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस' के तहत विशेषज्ञों की नियुक्त हो चुकी है।
यूजीसी के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के तहत उच्च शिक्षण संस्थान आजकल उद्योग, इंजीनियरिंग, होम साइंस, लॉ, मीडिया, इकनॉमिक्स समेत अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों को प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के तहत नियुक्त कर रहे हैं। प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस पोर्टल लांच होने के बाद से 332 उच्च शिक्षण संस्थानों या विश्वविद्यालयों में 11200 विशेषज्ञों ने ऑनलाइन पंजीकरण किया है। वहीं, 32 उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के तहत विशेषज्ञों की नियुक्त हो चुकी है। इसमें कंप्यूटर साइंस, मार्केटिंग एडवांस, इंजीनियरिंग, होटल मैनेजमेंट समेत अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों को जगह मिली है। उद्योग अपनी जरूरत के आधार पर छात्रों को कौशल आधारित शिक्षा देंगे।
वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, यह पहल कक्षाओं में वास्तविक दुनिया के अनुभवों को शामिल करने और उच्च शिक्षा संस्थानों में संकाय संसाधनों को बढ़ाने के लक्ष्य के साथ प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस नामक एक नई भूमिका पेश करती है। सहयोगात्मक प्रयास का उद्देश्य व्यावहारिक कौशल से लैस स्नातक तैयार करना है। इस योजना में इंजीनियरिंग, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, उद्यमिता, प्रबंधन, चार्टर्ड अकाउंटेंसी (सीए), वाणिज्य, सामाजिक विज्ञान, मीडिया, साहित्य, ललित कला, सिविल सेवा, सशस्त्र बल, कानूनी पेशे और सार्वजनिक प्रशासन सहित विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल हो सकते हैं।
इस योजना में शामिल होने के लिए कम से कम 15 वर्ष की सेवा या अनुभव होना जरूरी है। हालांकि उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षक बनने वाली औपचारिक शैक्षणिक योग्यता अनिवार्य नहीं है। इन विशेषज्ञों को प्रोफेसर स्तर पर संकाय भर्ती के लिए सामान्य प्रकाशन और पात्रता मानदंड से छूट दी गई है, लेकिन उनके पास अपने संबंंधित क्षेत्र का कार्य अनुभव व कौशल जरूरी हे।
इस योजना में प्रैक्टिस ऑफ प्रोफेसरों की नियुक्ति एक निश्चित अवधि के लिए होगी। प्रारंभिक कार्यकाल एक वर्ष तक का हो सकता है। इसके अलावा सेवाओं के आधार पर विस्तार की संभावना भी है। इसमें उच्च शिक्षा संस्थान प्रैक्टिस के प्रोफेसरों के प्रदर्शन और योगदान का आकलन करेंगे और फैसला लेंगे।
किसी भी संस्थान में प्रैक्टिस ऑफ प्रोफेसर के लिए सेवा की अधिकतम अवधि तीन साल से अधिक नहीं होनी चाहिए, असाधारण मामलों में एक साल के विस्तार की संभावना के साथ किसी भी परिस्थिति में कुल सेवा अवधि चार साल से अधिक नहीं होनी चाहिए। इस योजना से किसी विश्वविद्यालय/कॉलेज में स्वीकृत पदों की संख्या या नियमित संकाय सदस्यों की भर्ती पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।